हिंदी कहानियां - भाग 154
शिक्षा का महत्त्व
शिक्षा का महत्त्व आजकल मीना और राजू के स्कूल की छुट्टियाँ चल रहीं हैं। तभी तो वो दोनों आराम से आँगन में बैठ के कहानी की किताब पढ़ रहे हैं। तभी दीपू दौड़ता हुआ आता है, ‘मीना...शहर से कुछ लोग आये हैं,फ़िल्म की शूटिंग करने।’ मीना और राजू खुशी से उछल पड़ते हैं। मीना,राजू और दीपू भाग के बड़े मैदान में पहुंचे। वहाँ उन्हें मिले सरपंच जी। सरपंच जी उनकी बात सुनके बोले, ‘बच्चों! ये लोग फ़िल्म वाले नहीं हैं, ये एक N.G.O यानी गैर सरकारी संस्था के लोग हैं जो हमारे गाँव में एक फ़िल्म बनायेंगे ‘शिक्षा के महत्त्व’ पर।......और उसी फ़िल्म के लिए ये लोग हमारे गाँव के कुछ बच्चों से बातचीत करेंगे, और उसे कैमरे में कैद करेंगे। दीपू प्रश्न करता है, ‘लेकिन सरपंच जी, ये लोग बच्चों से क्या बातचीत करेंगे?’ सरपंच जी जबाब देते हैं, ‘दीपू बेटा ये लोग उन बच्चों के लिए प्रोग्राम बना रहे हैं जो या तो कभी स्कूल गए ही नहीं, या फिर वो बच्चे जिन्होंने किसी कारणवश स्कूल जाना छोड़ दिया है।’ मीना- सरपंच जी, क्या मैं राजू और दीपू इसमें हिस्सा ले सकते हैं? सरपंच जी-हाँ-हाँ मीना बेटी, आओ तुम्हें N.G.O. के कार्यकर्ताओं से मिलवाता हूँ। सरपंच जी ने राजू, मीना और दीपू को N.G.O. के कार्यकर्ता दिव्या जी से मिलवाया। दिव्या जी ने उन तीनो को बताया कि कार्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए कल उन्हें कैमरे के सामने खड़े होके कुछ लाइनें बोलनी होंगीं। दिव्या जी- बच्चों तुम सब कैमरे के सामने ये बताना कि तुम्हें स्कूल जाना अच्छा क्यों लगता है? या फिर....स्कूल जाके तुम क्या-क्या सीखते हो? या स्कूल से सम्बंधित कोई भी बात। और अगले दिन..... दिव्या जी- जब डायरेक्टर साहब जोर से ‘एक्शन’ कहेंगे तो तुम सब अपनी-अपनी लाइन बोलना शुरु कर देना। रोलिंग....एक्शन....... मीना-मेरा नाम मीना है। मुझे स्कूल जाना बहुत अच्छा लगता है। मैं रोज़ स्कूल जाती हूँ और स्कूल जाके हर दिन कोई न कोई नई चीज जरूर सीखती हूँ। धन्यवाद। डायरेक्टर साहब की आवाज़ गूंजती है, ‘कट’ दिव्या जी- दीपू, अब तुम्हारी बारी... .....‘एक्शन’...... दीपू- मुझे स्कूल जाने में बहुत मजा आता है। मैं और मेरे सभी दोस्त स्कूल में पढाई करते हैं, खेलते हैं....एक साथ मिलके खाना खाते हैं। स्कूल से अच्छे जगह कोई हो ही नहीं सकती। ....’कट’.... राजू- अब मेरी बारी। दिव्या जी- राजू, अभी तुम्हारी नहीं प्रीती की बारी है। प्रीती जो साथ वाले गाँव से आयी है। ...एक्शन.... प्रीती- वो बच्चे सच में किस्मत वाले होते हैं जो स्कूल जाते हैं क्योंकि स्कूल जाके ही उन्हें पढ़ना लिखना, जिंदगी में आगे बढ़ने का मौका मिलता है। और जो बच्चे स्कूल नहीं जाते वो जिन्दगी के दौर में पीछे रह जाते हैं.....बहुत पीछे.....। इसीलिए हर एक बच्चे को स्कूल जाना चाहिए। धन्यवाद। ...कट... कैमरे में कुछ तकनीकी खराबी आ जाने के कारण प्रीती का इंटरव्यू (लाइनें) ठीक से रिकॉर्ड नहीं हो पाती हैं।....तो दिव्या जी उसे कल दुबारा आकर ये लाइनें बोलने का आग्रह करती हैं। प्रीती वहां से थोडी दूर ही गयी थी कि मीना ने उसे आवाज़ देके रोका। मीना- ....मैने आपको पहले कभी यहाँ नहीं देखा। प्रीती- मैं साथ वाले गाँव में रहती हूँ मीना। मैं यहाँ मेरे माता-पिता, थोड़े दिन पहले ही वहां रहने आये है। मेरे पिताजी मजदूर हैं। काम के सिलसिले में उन्हें एक गाँव से दूसरे गाँव या शहर जाना पड़ता है। मीना- ओह! इसका मतलब आप लोग कुछ दिनों बाद कहीं और चले जायेंगे। प्रीती-नहीं, ...क्योंकि पिताजी को इस बार गाँव में ही एक अच्छा सा काम मिल गया है।...मीना, चाहती तो मैं भी हूँ कि मैं....। तभी..... “प्रीती वापस आ जाओ कैमरा ठीक हो गया है।” दिव्या जी प्रीती से कहती हैं, ‘मैं चाहती हूँ कि इस बार तुम इस स्क्रिप्ट में लिखी लाइनें पढो।” ...एक्शन... प्रीती- स्कूल का हमारे जीवन में विशेष महत्त्व है।....स्कूल सिर्फ पढ़ने-लिखने के लिए.... महत्त्वपूर्ण ही नहीं ...... “कट-कट-कट” दिव्या जी- क्या हुआ प्रीती, तुम ऐसे अटक-अटक कर क्यों पढ़ रही हो? अगर तुम चाहो तो थोड़ी देर इन लाइन्स को बोलने का अभ्यास कर सकती हो। प्रीती- नहीं,,,मैं जा रही हूँ, मुझसे नहीं हो पायेगा। प्रीती वापस जाने लगती है। मीना उसे वापस लाने उसके पीछे भागती है। प्रीती बताती है, ‘मीना मुझे ठीक से पढ़ना नही आता। मैंने तुम्हें बताया था ना मेरे पिताजी को काम के सिलसिले में गाँव-गाँव,शहर-शहर जाना पड़ता था..बस उसी वजह से मैं नियमित रूप से स्कूल नही जा पायी। एक-दो जगह मैंने स्कूल मैं दाखिला लिया भी था लेकिन कुछ दिनों बाद वो स्कूल मुझे छोड़ने पड़े। पिताजी को काम करने दूसरे गाँव जो जाना था।’ मीना- प्रीती दीदी, आपने बताया था कि अब आप और आपका परिवार साथ वाले गाँव में ही रहेंगे तो आप मेरे स्कूल में दाखिला ले सकती हैं। प्रीती- नहीं मीना, अब बहुत देर हो चुकी है,,,मैं सिर्फ दूसरी कक्षा तक ही स्कूल गयी थी। तब मैं सिर्फ सात साल की थी और सब मैं चौदह साल की हूँ। आब स्कूल जाके तीसरी कक्षा के छोटे-छोटे बच्चों के साथ बैठ के पढूंगी तो मुझे शर्म आयेगी। मीना प्रीती को बताती है की बहिन जी कहती हैं कि, ‘वो बच्चे जिन्हें किसी कारणवश स्कूल छोड़ना पड़ता है,जो स्कूल नहीं जा पाते उन्हें पढ़ाने के लिए आयु के अनुसार विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम उपलब्ध हैं।’ “मीना ठीक कह रही है प्रीती” मीना की बहिन जी पीछे से वहां आ जाती हैं, जिन्होंने उन दोनों की सारी बातें सुन ली हैं। बहिन जी समझाती हैं, ‘.. बहिन जी पीछे से वहां आ जाती हैं, जिन्होंने उन दोनों की सारी बातें सुन ली हैं। बहिन जी समझाती हैं, ‘..आजकल बहुत से स्कूलों में स्पेशल ट्रेनिंग प्रोग्राम यानी विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम उपलब्ध हैं। और तुम्हें इसका लाभ जरूर उठाना चाहिए।.......इन कार्यक्रमों में सबसे पहले तुम्हारे जैसे बच्चों को दाखिल किया जाता है।...फिर उन बच्चों को विशेष तरीके से पढाया लिखाया जाता है ताकि वो जल्दी से सब कुछ सीखकर अपनी उम्र के अनुसार उसी क्लास में पढ़ सकें।...और सिर्फ यही नहीं वो बच्चे स्कूल की बाकी गतिविधियों जैसे सुबह की सभा, पुस्तकालय,मध्याह्न भोजन,खेलकूद आदि में भी हिस्सा ले सकते हैं। इस तरह से तुम अपनी उम्र के बच्चों के साथ घुलमिल भी जाओगी और जल्द ही उनके साथ कक्षा में पढ़ भी सकोगी। मिठ्ठू चहका, ‘शाबाश! पढ़ लिख कर फैलाओ शिक्षा का प्रकाश’